यादों का क्या है?
खुद ही बन जाती हैं ...
मनं के एक कोने में, घर कर जाती हैं
आती नहीं हैं यादें, साथ ही रहती हैं
कहीं खुली नदी जैसे , यूँ ही बेकल बहती हैं
गर बस चलता यादों पर ,
तो चुन चुन कर वो यादों का गुलदस्ता बनाते
उसकी ही खुशबु से हर पल को महकाते
पर यादों का क्या है?
खुद ही बन जाती हैं ...
एकदम साफ़ , एकदम सहज , जैसे ओस की बूँदें
उनमे हमेशा कुछ अच्चा ही होता है
जैसे वो रिश्ते जिन्हें हम खुद नहीं बनाते ...
इन यादों का क्या है ,
खुद ही बन जाती हैं ...
2 comments:
Why is this under Aril???
Good one!
Thanks THE Ka...Its under aril so that you comment on it :))
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