Wednesday, 5 January 2011

जीवन

ये जीवन कहाँ से कहाँ चला जाता है ||

कभी यूँ ही सन्नाटे में , दूर से कुछ आवाजें आती हैं
जैसे कानों में भर के , यादें ऐसे इठलाती हैं
नन्ही सी धूप किरण जैसे , दूर से एक खुशबू लेकर
मेरे घर में पर्दों से लुका छुपी खेलती ,
यूँ ही बिखर जाती है
कोई आहट , किसी बीते हुए पल की ,
कभी हसाती है , कभी रुलाती है ...
ये जीवन कहाँ से कहाँ चला जाता है ...||

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