Tuesday, 10 May 2011

|| एक आम आदमी ||

मैं एक आम आदमी हूँ
मेरी कुछ इच्छाएं हैं और कुछ आशाएं भी

मैं दिन भर पल पल कल के लिए जीता हूँ
वो कल जो अब तक नहीं आया , शायद आएगा भी नहीं

आज पिसता हूँ की कल एक नयी सुबह मुझे जगाएगी
फिर उस सुबह को अनदेखा कर के , एक नए कल की कल्पना में रह जाता हूँ

मैं ही सड़क के किनारे भीख मांगता हूँ ,
और मैं ही उन हाथों में आठ आने दबा कर अपने रस्ते चला जाता हूँ

वो भी मैं हूँ जो कल कचड़े में रोटी ढूँढ रहा था
मैंने ही तो उस टुकड़े को फेंका जो था वहां

ये क़ानून मैंने ही बनाये हैं , ये सरकार मैं ही हूँ ,
और वहां उस कठघरे में सर झुकाए मैं ही तो खड़ा हूँ

मैं ही आज सुबह रेडियो पर खबरें पढ़ रहा था
वो ख़बरें जो गए दिन मैंने ही तो बनायीं थी

ये आज जो मैं इतने हिस्सों में बँट गया हूँ
ये लकीरें मैं ही तो खींचता आया हूँ

मैं एक आम आदमी हूँ , आम भी और ख़ास भी
मैं एक आम आदमी हूँ , और मैंने ही खुद को आम भी बनाया है ...

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